निबंधिनीसाधन सदन, 1962 - 202 páginas |
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... को , रथूल रूप में सूक्ष्म रूप को , सामीप्य की सम्पत्ति और सिद्धि बनाना ही कलाकार की साधना है । अपनी अनुभूति की अचल तन्मयता में ...
... को , रथूल रूप में सूक्ष्म रूप को , सामीप्य की सम्पत्ति और सिद्धि बनाना ही कलाकार की साधना है । अपनी अनुभूति की अचल तन्मयता में ...
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... को शब्दों के द्वारा सभी नहीं प्रकट कर सकते , क्योंकि यह मुक विनिमय हमारे ज्ञान- तंतुनों को छूता जरूर है , किन्तु किसी को कम और किसी को ...
... को शब्दों के द्वारा सभी नहीं प्रकट कर सकते , क्योंकि यह मुक विनिमय हमारे ज्ञान- तंतुनों को छूता जरूर है , किन्तु किसी को कम और किसी को ...
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... को अपने मन के संकरण दायरे में बाँधने का प्रयत्न न करें , वरन् उसमें सुरुचि तथा सनातनता का समावेश करने का प्रयत्न करें । यों तो कहने ...
... को अपने मन के संकरण दायरे में बाँधने का प्रयत्न न करें , वरन् उसमें सुरुचि तथा सनातनता का समावेश करने का प्रयत्न करें । यों तो कहने ...
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अधिक अनुभूति अपना अपनी अपने अभिव्यक्ति आज आत्मा इन इस इसी उनकी उनके उपन्यास उस उसका उसकी उसके उसमें उसी उसे एवं ओर कर करते करने कला कला के कलाकार कल्पना कवि कविता कहानी का कारण काल काव्य किन्तु किया किसी कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्योंकि गया चाहिए छायावाद जब जा जाता है जाती जी जीवन के जो तक तथा तो था दूसरे दोनों नहीं नहीं है नाटक ने पर प्रकार प्रकृति प्रभाव बात भारत भाव भावना भाषा मन मनुष्य मानव मूल में भी यदि यह यही या युग रहा है रूप लेकर वस्तु वह विकास विचार विशेष विश्व वे वेदना व्यक्ति संसार सकता है सकती सत्य सभी समय समाज समालोचना साधना साहित्य की साहित्य में सृष्टि से स्थिति स्वरूप हम हमारी हमारे हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए हृदय है और है कि हैं हो सकता होकर होता है होती होते होने