निबंधिनीसाधन सदन, 1962 - 202 páginas |
Dentro del libro
Resultados 1-3 de 64
Página 20
... यही पार्थिव जीवन है । साहित्यकार की साधना भी तो जीवन से ही प्रारंभ होकर जीवन में ही निगूढ़ हो जाती है ; किन्तु मूर्त जीवन में अमूर्त ...
... यही पार्थिव जीवन है । साहित्यकार की साधना भी तो जीवन से ही प्रारंभ होकर जीवन में ही निगूढ़ हो जाती है ; किन्तु मूर्त जीवन में अमूर्त ...
Página 39
... यही हमारी अवस्था है अपने भाव- जगत् में । हम कहना चाहते हैं , पर जो कहना चाहते हैं कह नहीं सकते ; और जब हमारी भावनाओं को अपनी वाणी में ...
... यही हमारी अवस्था है अपने भाव- जगत् में । हम कहना चाहते हैं , पर जो कहना चाहते हैं कह नहीं सकते ; और जब हमारी भावनाओं को अपनी वाणी में ...
Página 41
... यही चित्रोपमता कला है ; इसीलिए कला को एक विशेष विकल्पना तथा अनुभूति की भी संज्ञा दी जाती है । वास्तव में कला न भाव है न चित्र है ...
... यही चित्रोपमता कला है ; इसीलिए कला को एक विशेष विकल्पना तथा अनुभूति की भी संज्ञा दी जाती है । वास्तव में कला न भाव है न चित्र है ...
Otras ediciones - Ver todas
Términos y frases comunes
अधिक अनुभूति अपना अपनी अपने अभिव्यक्ति आज आत्मा इन इस इसी उनकी उनके उपन्यास उस उसका उसकी उसके उसमें उसी उसे एवं ओर कर करते करने कला कला के कलाकार कल्पना कवि कविता कहानी का कारण काल काव्य किन्तु किया किसी कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्योंकि गया चाहिए छायावाद जब जा जाता है जाती जी जीवन के जो तक तथा तो था दूसरे दोनों नहीं नहीं है नाटक ने पर प्रकार प्रकृति प्रभाव बात भारत भाव भावना भाषा मन मनुष्य मानव मूल में भी यदि यह यही या युग रहा है रूप लेकर वस्तु वह विकास विचार विशेष विश्व वे वेदना व्यक्ति संसार सकता है सकती सत्य सभी समय समाज समालोचना साधना साहित्य की साहित्य में सृष्टि से स्थिति स्वरूप हम हमारी हमारे हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए हृदय है और है कि हैं हो सकता होकर होता है होती होते होने