Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - 207 páginas |
Dentro del libro
Resultados 1-3 de 17
Página 37
... कभी चिन्ता में , कभी सुख में , कभी दुख में , कभी आशा में , कभी निराशा में , कभी जिज्ञासा में , कभी हलचल में बिता रहा हो और एका- एक उसको ...
... कभी चिन्ता में , कभी सुख में , कभी दुख में , कभी आशा में , कभी निराशा में , कभी जिज्ञासा में , कभी हलचल में बिता रहा हो और एका- एक उसको ...
Página 77
... कभी मौन , कभी सहज - सरल तरल , कभी एकान्त , कभी जगत की प्रति व्यग्र चिन्तित , कभी अपने ही मनोभावों में प्रसन्न , कभी प्रकृति- रहस्य के ...
... कभी मौन , कभी सहज - सरल तरल , कभी एकान्त , कभी जगत की प्रति व्यग्र चिन्तित , कभी अपने ही मनोभावों में प्रसन्न , कभी प्रकृति- रहस्य के ...
Página 186
... कभी वे नियति को अदृष्ट कहते हैं , कभी भगवान् कभी भाग्य , कभी अदृष्ट की लिपि कभी लक्ष्मी की लीला आदि । प्रसाद जी की यह नियति ऐसी ही है ...
... कभी वे नियति को अदृष्ट कहते हैं , कभी भगवान् कभी भाग्य , कभी अदृष्ट की लिपि कभी लक्ष्मी की लीला आदि । प्रसाद जी की यह नियति ऐसी ही है ...
Términos y frases comunes
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है