Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - 207 páginas |
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... कला ? पश्चिम में कला ने जो अपना स्वरूप पकड़ा , — कला कला के लिए - वह बड़ा विचित्र है , उनके यहाँ कला के पाँच भेद सर्वमान्य है : और उक्त ...
... कला ? पश्चिम में कला ने जो अपना स्वरूप पकड़ा , — कला कला के लिए - वह बड़ा विचित्र है , उनके यहाँ कला के पाँच भेद सर्वमान्य है : और उक्त ...
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... कलाओं की जो कल्पना की गई है , वह कामाश्रय के अन्तर्गत ही है - " नृत्यगतिप्रभूतयः कला कामार्थसंश्रयाः । इत्थं कला चतु : षष्ठि विरोध ...
... कलाओं की जो कल्पना की गई है , वह कामाश्रय के अन्तर्गत ही है - " नृत्यगतिप्रभूतयः कला कामार्थसंश्रयाः । इत्थं कला चतु : षष्ठि विरोध ...
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... कला के भीतर मानव - जीवन झाँक रहा है | काव्य में कला का सौन्दर्य तभी है जबकि कवि समाज रस का परदा सामने लाकर डाल दे और एक आदर्श की दीवार ...
... कला के भीतर मानव - जीवन झाँक रहा है | काव्य में कला का सौन्दर्य तभी है जबकि कवि समाज रस का परदा सामने लाकर डाल दे और एक आदर्श की दीवार ...
Términos y frases comunes
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है