Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - 207 páginas |
Dentro del libro
Resultados 1-3 de 76
Página 155
... तक को इसी स्नेह में वह इड़ा को सौंप देती है । एक निर्जन स्थान में ध्यानस्त बैठा हुआ मनु श्रद्धा को मिल जाता है | मनु की आँखें खुलती ...
... तक को इसी स्नेह में वह इड़ा को सौंप देती है । एक निर्जन स्थान में ध्यानस्त बैठा हुआ मनु श्रद्धा को मिल जाता है | मनु की आँखें खुलती ...
Página 173
... तक पहुँची है । कवि ने स्थान दिया है या सत् कर्म को ? इस तर्क में हमें नहीं पड़ना है । हमें ' कामायनी ' के कर्म को वहीं तक देखना है जहाँ तक ...
... तक पहुँची है । कवि ने स्थान दिया है या सत् कर्म को ? इस तर्क में हमें नहीं पड़ना है । हमें ' कामायनी ' के कर्म को वहीं तक देखना है जहाँ तक ...
Página 193
... तक के लिए भी सकता — विश्व उसका है : - My fortune leads to traverse realms alone , And find no sqot of all the world my own . -Gold smith . प्रसाद जी ने अपने ' आँसू ' में नियति की ...
... तक के लिए भी सकता — विश्व उसका है : - My fortune leads to traverse realms alone , And find no sqot of all the world my own . -Gold smith . प्रसाद जी ने अपने ' आँसू ' में नियति की ...
Términos y frases comunes
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है