Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - 207 páginas |
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... तो कुछ है । सीता अपने सास- ससुर की सेवा न कर सकी परन्तु श्रद्धा ने ... तो यह स्वाभाविक ही है- ' प्रेम ' तो असफल हो ही गया अब ' मानवता ' ही ...
... तो कुछ है । सीता अपने सास- ससुर की सेवा न कर सकी परन्तु श्रद्धा ने ... तो यह स्वाभाविक ही है- ' प्रेम ' तो असफल हो ही गया अब ' मानवता ' ही ...
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... तो स्वयं बुद्धि को मेरे विकल्प संकल्प बनें , बुद्धिवाद को अपनाया मानो आज यहाँ पाया । जीवन हो कर्मों की पुकार सुख साधन का हो खुला ...
... तो स्वयं बुद्धि को मेरे विकल्प संकल्प बनें , बुद्धिवाद को अपनाया मानो आज यहाँ पाया । जीवन हो कर्मों की पुकार सुख साधन का हो खुला ...
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... तो वहाँ भी प्रकृति का ऐसा अस्वाभाविक वर्णन हुआ है कि गोप - गोपियों , राधा तथा यशोदा के प्रति करुणा का भाव न जाग्रत होकर ' प्रियप्रवास ...
... तो वहाँ भी प्रकृति का ऐसा अस्वाभाविक वर्णन हुआ है कि गोप - गोपियों , राधा तथा यशोदा के प्रति करुणा का भाव न जाग्रत होकर ' प्रियप्रवास ...
Términos y frases comunes
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है