Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - 207 páginas |
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... थे मानो वे अनमिल थे किन्तु सजग थे । श्रद्धा इन तीनों लोकों ( इच्छा , क्रिया , ज्ञान ) की विशेषता मनु को बताती हुई अन्त में कहती है : यही ...
... थे मानो वे अनमिल थे किन्तु सजग थे । श्रद्धा इन तीनों लोकों ( इच्छा , क्रिया , ज्ञान ) की विशेषता मनु को बताती हुई अन्त में कहती है : यही ...
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... थे सुन्दर सुर - धनु माला पहिने ; कुंजर - कलभ सदृश इठलाते चमका चपला के गहने । प्रवहमान थे निम्न देश में शीतल शत शत निर्झर ऐसे , महा ...
... थे सुन्दर सुर - धनु माला पहिने ; कुंजर - कलभ सदृश इठलाते चमका चपला के गहने । प्रवहमान थे निम्न देश में शीतल शत शत निर्झर ऐसे , महा ...
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... थे विद्यापति , शान्त रस के प्रेमी थे तुलसी और करुणा रस के प्रेमी थे भवभूति । प्रसाद जी की ' कामायनी ' में ये तीनों रस प्रधान हैं ...
... थे विद्यापति , शान्त रस के प्रेमी थे तुलसी और करुणा रस के प्रेमी थे भवभूति । प्रसाद जी की ' कामायनी ' में ये तीनों रस प्रधान हैं ...
Términos y frases comunes
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है