Kāmāyanī ke panneNavayuga Granthāgāra, 1962 - 207 páginas |
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... कि प्रसाद जी ने छोड़ दिया हो । इतना अवश्य है कि प्रसाद जी ने व्यर्थ की भूमिका किसी भी सर्ग में नहीं बांधी है । अतः , इस सम्बन्ध में ...
... कि प्रसाद जी ने छोड़ दिया हो । इतना अवश्य है कि प्रसाद जी ने व्यर्थ की भूमिका किसी भी सर्ग में नहीं बांधी है । अतः , इस सम्बन्ध में ...
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... कि सहसा आभास ही नहीं हो पाता कि कवि क्या कहने जा रहा है : ―― चाँदनी सदृश खुल जाय कहीं अवगुंठन आज संवरता सा ; जिसमें अनन्त कल्लोल भरा ...
... कि सहसा आभास ही नहीं हो पाता कि कवि क्या कहने जा रहा है : ―― चाँदनी सदृश खुल जाय कहीं अवगुंठन आज संवरता सा ; जिसमें अनन्त कल्लोल भरा ...
Página 103
... कि वे सब पवन के रास्ते में पड़ते भी हैं या नहीं , इसमें सन्देह है । यही नहीं , जब कृष्ण के भेजने पर उद्धव मथुरा से बृज की ओर आते हैं तो ...
... कि वे सब पवन के रास्ते में पड़ते भी हैं या नहीं , इसमें सन्देह है । यही नहीं , जब कृष्ण के भेजने पर उद्धव मथुरा से बृज की ओर आते हैं तो ...
Términos y frases comunes
अपना अपनी अपने अब आज आदि आनन्द इस इसी उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक कभी कर करता है करती करते करने कर्म कला कवि कवि ने का काम कामायनी काव्य किन्तु किया है किसी की की ओर कुछ के रूप के लिए केवल कोई क्या गई गया चित्र चिन्ता जब जा जाता है जाती जिस जीवन जो ज्ञान तक तथा तुम तो था थी थे दर्शन दिया देख देता देती है नहीं नारी नियति पति पर प्रकृति प्रसाद जी ने प्रेम फिर बन भाव भी भीतर मनु को महाकाव्य मानव में में ही मैं यह यही या रस रहा है रही रहे रूप रूप में ले लेकिन वर्णन वह वासना विश्व वे शिव श्रद्धा के संस्कृति सकता सत्य सब सर्ग में सा साहित्य सी सीता सुख सुन्दर सृष्टि से सौन्दर्य ही हुआ हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है